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उसका दोष क्या है भाग - 5 15 पार्ट सीरीज

    उसका दोष क्या है (भाग-5) 15 पार्ट सीरीज 

         कहानी अब तक
रमेश के प्रपोजल के बाद से विद्या परेशान हो गई।
              अब आगे
   विद्या समझ नहीं पा रही थी रमेश का प्रेम निमंत्रण उसे अच्छा लगा या बुरा। दिल में घबड़ाहट भी होती थी उसकी बातें याद करके, और शर्म भी आती थी। इसी उहापोह में उसका समय बीत रहा था। कई बार कहने के बाद भी वह एक दिन भी रमा के घर नहीं गई।
  लेकिन एक दिन जब कॉलेज से वह रमा के साथ आ रही थी,रमा ने उसे अपने घर के पास आने के बाद खींचना शुरू कर दिया -  
    "चल आज मेरे घर,मेरे भैया आए हैं मेरे लिए बहुत से उपहार लेकर आए हैं। चल मैं तुझे दिखाना चाहती हूं"।
   विद्या  -   "रमा मुझे घर जाने में देर हो जाएगी"।
लेकिन रमा कहां सुनने वाली थी। उसने उसे खींचना शुरू किया तो छोड़ा नहीं, और मजबूर होकर विद्या रमा के साथ उसके घर आई। घर में प्रवेश करते ही उसने देखा एक अपरिचित युवक बैठा है और साथ में रमेश भी था रमेश को देखकर वह घबड़ा गई, लेकिन वहां से वह निकल भी नहीं सकती थी। अपरिचित युवक ने उसे देख लिया था जो संभवत रमा के भैया मोहन थे। उन्होंने इन दोनों को देखते ही कहा -  
   "तुम शायद रमा की दोस्त विद्या हो ? तुम्हारी चर्चा रमा इतना अधिक करती है,कि तुम्हें उसके साथ नहीं,अकेले में कहीं बाहर भी देखता तो भी पहचान जाता। आ जाओ यहाँ बैठो"।
   कहते हुए उन्होंने विद्या के बैठने के लिए उसकी और कुर्सी खिसका दी और संयोगवश यह कुर्सी रमेश के बगल में ही थी। अब वह असमंजस में पड़ गई।
  रमा  -    "विद्या तू बैठ यहां मैं किताबें रख कर और फ्रेश होकर आती हूं। और हाँ शरबत भी बना कर लाती हूं। आप  लोग पियेंगे शर्बत"?
रमा ने पलटकर मोहन और रमेश से पूछा।
     विद्या  -  "चलो मैं भी तुम्हारे साथ तुम्हारी मदद कर दूंगी"।
मोहन  -   " क्यों इतनी घबड़ा रही हो तुम ? हमारे पास बैठने में तुम्हें हिचकिचाहट कैसी ? अरे जैसे रमा का मैं भैया हूं तुम्हारा भी तो हूं। रमा की दोस्त होने के नाते तुम भी तो मेरी छोटी बहन हुई,चलो बैठो"।
    फिर उन्होंने रमा से कहा -  "तुम भी फ्रेश होकर आ जाओ। हमें शर्बत नहीं पीना,सीमा को मैने बोला हुआ है चाय बनाने के लिए, तुम लोग के लिए भी बना देगी। और उसके पहले शरबत भी बना देगी तुम लोगों के लिए"।
  रमा  -   "वाह भैया क्या बात है आज हमारी बहुत खातिरदारी हो रही है। यह हम लोगों  के थक कर आने के कारण हो रहा है या फिर नई बहन मिलने की खुशी में"।
  मोहन  -  नई बहन नहीं, तुमने ही तो कहा था विद्या बहुत मेधावी है,तो मेधावी बहन मिलने की खुशी में। आते समय हम लोगों के लिए पानी लेते आना,नहीं तो तेरे समान सीमा कहेगी - दीदी के आने के बाद मुझसे इतना मेहनत करवा रहे हैं"।
तब तक सीमा शरबत लेकर आ गई थी।
उसने कहा  -  "मैंने सब सुन लिया भैया। मैं दोनों दीदी के लिए शरबत लेकर आई,और अब आप लोगों के लिए पानी और चाय एक साथ ला रही हूं। माफ कीजिएगा चाय बनने में थोड़ी देर हो गई। असल में चाय बन गई थी परंतु रमा दीदी और विद्या दीदी के लिये फिर से बनाने लगी"।
   थोड़ी ही देर में सीमा चाय और साथ में मां के बनाए हुए खस्ता के साथ पानी भी लेकर आ गई। हंसी खुशी के माहौल में उन सब ने नाश्ता किया, चाय पी और थोड़ी देर बातचीत करते रहे।
  विद्या अपने घर जाने के लिए उठ गई। रमेश ने कहा -  " विद्या जी मैं आपको आपके घर तक छोड़ देता हूं"।
  उसका प्रस्ताव सुनकर विद्या बहुत अधिक घबरा गई। अकेले में रमेश का सामना करना नहीं चाहती थी विद्या -   "नहीं नहीं मैं चली जाऊंगी आप परेशान न हों"।
  उसका स्पष्ट इंकार सुनकर रमेश मायूस हो गया। मोहन ने गौर से विद्या और रमेश दोनों के चेहरे को  देखा फिर कहा-
   " विद्या शाम हो गई है,ठीक नहीं है अभी तुम्हारा अकेले जाना। चलो मैं तुम्हारे घर तक तुम्हें छोड़ कर आता हूं। तुम्हारे घर वालों से भी मिल लूंगा"।
  फिर उन्होंने रमा से कहा -  " चल रमा हम दोनों विद्या को उसके घर तक छोड़ कर आते हैं"।
     अब चुप रही विद्या,भैया को क्या कहती! उनके स्वर का स्वाभाविक स्नेह और अधिकार भाव उनकी हर बात मानने के लिए विद्या को मजबूर कर रहा था ।
  " विद्या तूने तो उपहार देखे ही नहीं जो भैया ने मुझे दिए हैं चल मेरे कमरे में मैं तुझे अपने सभी उपहार दिखाऊंगा"– रमा भैया के लाये उपहार दिखाने के लिए विशेष उत्सुक थी ।
   "आज नहीं रमा मैं दूसरे दिन देख लूंगी देखो शाम हो गई है, मां बहुत परेशान हो रही होगी इतनी देर होने से"– विद्या घर शीघ्र जाने के लिए व्यग्र थी।
    "विद्या सही कह रही है रमा। शाम हो गई है, इसके घर वाले चिंता कर रहे होंगे।"
भैया ने भी विद्या की बात का समर्थन किया तो रमा उस पर और दबाव नहीं डाल सकी रुकने के लिए ।  रमाऔर मोहन विद्या को छोड़ने उसके घर तक आये। मोहन भैया ने उसके माता-पिता भाई बहन सबसे बहुत अपनत्व से बात किया और फिर वे रमा को लेकर लौट गए।
   कथा जारी है।
                                       क्रमशः
    निर्मला कर्ण

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सुन्दर अति सुन्दर

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